रसना कटौ जु अन रटौ, निरखि अन फुटौ नैन।
स्रवन फुटौ जो अन सुनौ, बिनु राधा-जसु बैन॥
सबसौ हित निष्काम मति, बृंदाबन बन विस्राम।
राधावल्लभ लाल कौ, हृदय ध्यान, मुख नाम॥
तनहिं राखु सतसंग में, मनहिं प्रेमरस भेव।
सुख चाहत 'हरिवंश हित', कृष्ण-कल्पतरु सेव॥
निकसि कुंज ठाढ़े भये, भुजा परस्पर अंस।
राधावल्लभ-मुख-कमल,निरखत 'हित हरिबंस'॥